Major Dhyan Chand: Indian Hockey- हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की आज पुण्य तिथि (Major Dhyan Chand Death Anniversary) है। मेजर ध्यानचंद जी का निधन 74 वर्ष की आयु (3 दिसम्बर 1979) में आज ही के दिन दिल्ली में हुआ था। वह ना सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के महान खिलाड़ियों में गिने जाते थे, क्रिकेट में ब्रॅडमन, फुटबॉल में पेले की तरह हॉकी में ध्यानचंद का नाम लिया जाता है। उन्होंने अपने करियर में 1000 से भी ज्यादा गोल दागे थे, और उनका रुतबा इस तरह का था कि हिटलर ने भी उन्हें अपने देश से खेलने की पेशकश की। वह सेना में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए थे, लेकिन वह मेजर बनकर दुनियाभर में मशहूर हुए। आइए जानते हैं उनसे जुड़े कुछ किस्से (Unknown Facts/Life)।
Major Dhyan Chand: Indian Hockey- सिपाही से सूबेदार तक का सफर
अपनी पढ़ाई के बाद मेजर ध्यानचंद 16 साल की उम्र में दिल्ली में पहली ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में एक सिपाही के रूप में भर्ती हुए थे। कहा जाता है कि जब वह सेना में भर्ती हुए, उस समय तक वह हॉकी को लेकर दिलचस्पी नहीं रखते थे। मेजर तिवारी नाम के एक सूबेदार ने उन्हें पहली बार हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया, वह खुद खेल प्रेमी थे। बस उन्होंने जब हॉकी खेलना शुरू किया तो दिन के साथ बेहतर होते गए, और अपनी प्रतिभा से लोगों में पहचान बनाने लगे।
साल 1927 में उन्हें लांस नायक बना दिया गया, 1932 में लॉस एंजेल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए। हॉकी टीम के कप्तान रहते हुए 1937 में वह सूबेदार बने। 1943 में जब द्वितीय महायुद्ध शुरू हुआ तो, उस दौरान वह लेफ्टिनेंट पद पर नियुक्त हुए। उनकी सेना में पदोन्नति सिर्फ शानदार खेल की वजह से ही हुई। 1938 में उन्हें वायसराय का कमीशन मिला, और वह ध्यानचंद सूबेदार बन गए। इसके बाद वह लेफ्टिनेंट और कैप्टन बने, और फिर उन्हें मेजर पद पर नियुक्त किया। भारत के आजाद होने पर 1948 में मेजर ध्यानचंद कप्तान बने।
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Major Dhyan Chand Death Anniversary, Unknown Facts/Life
ऑस्ट्रिया के वियना में ध्यानचंद की एक विशेष मूर्ति लगवाई गई, जिसमे उन्हें चार हाथ में चार हॉकी स्टिक लिए दिखाया गया। ये दिखाता है कि वह दुनियाभर में किस तरह प्रसिद्ध थे।
1928 एम्सटर्डम ओलिंपिक गेम्स में मेजर ध्यान चंद ने भारत के लिए 14 गोल किए, जो सर्वाधिक थे। अखबारों में उन्हें हॉकी के जादूगर नाम से कहा जाने लगा।
कई किस्सों में इस बात को कहा जाता है कि जब ध्यानचंद खेलते थे तो ना सिर्फ दर्शक, बल्कि विरोधी टीम के खिलाड़ी भी उनकी अद्भुद प्रतिभा देखकर रुक जाते थे। वह उन्हें खेलते हुए देखने के लिए बहुत उत्सुक रहते थे।
कई टीमों को लगता था कि ध्यानचंद ने अपनी स्टिक में कुछ लगा रखा है, जिससे गेंद उनकी हॉकी से अलग नहीं होती। कई बार तो इस शंका में उनकी हॉकी स्टिक भी तोड़ी गई, लेकिन कुछ नहीं होने पर ध्यानचंद की प्रतिभा का लोहा दुनिया ने माना।
1932 ओलंपिक फाइनल में भारत ने अमेरिका को 24-1 से मात दी थी, इसमें ध्यानचंद ने 8 और रूप सिंह (उनके भाई) में 10 गोल दागे थे।