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Decision Review System: क्या है DRS, कैसे काम करती है हॉक आई तकनीक; पढ़ें अल्ट्राएज और हॉट स्पॉट के बारे में सब कुछ

Decision Review System: क्या है DRS, कैसे काम करती है हॉक आई तकनीक; पढ़ें अल्ट्राएज और हॉट स्पॉट के बारे में सब कुछ

Decision Review System: क्या है DRS, कैसे काम करती है hawkeye technology; पढ़ें UltraEdge technology और hotspot technology के बारे में सब कुछ
Decision Review System, hotspot technology, UltraEdge technology: भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच तीन टेस्ट मैचों की सीरीज का आखिरी मुकाबला केपटाउन में खेला जा रहा है। मुकाबले के तीसरे दिन दक्षिण अफ्रीका की दूसरी पारी में कप्तान डीन एल्गर के DRS पर अब विवाद बढ़ता ही जा रहा है। एल्गर को नॉट आउट दिए […]

Decision Review System, hotspot technology, UltraEdge technology: भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच तीन टेस्ट मैचों की सीरीज का आखिरी मुकाबला केपटाउन में खेला जा रहा है। मुकाबले के तीसरे दिन दक्षिण अफ्रीका की दूसरी पारी में कप्तान डीन एल्गर के DRS पर अब विवाद बढ़ता ही जा रहा है। एल्गर को नॉट आउट दिए जाने के बाद तो भारतीय खिलाड़ियों को गुस्सा फूट पड़ा। कप्तान कोहली समेत कई भारतीय खिलाड़ियों ने स्टंप माइक पर अपनी भड़ास निकाली। वहीं इस घटना के बाद से ही हॉकआई तकनीक (hawkeye technology) पर भी सवाल उठ रहे हैं। खेल की ताजा खबरों के लिए जुड़े रहिए- hindi.insidesport.in

hawkeye technology, hotspot technology, UltraEdge technology, Decision Review System, DRS: तो आखिर क्या होती है हॉकआई और यह कैसे काम करती है। दरअसल बल्लेबाज आउट है या नहीं यह पता करने के लिए डीआरएस में तीन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें से पहला है अल्ट्राएल, दूसरा है हॉट स्पॉट और तीसरा है हॉक आई तकनीक। इस खबर में हम आपको इन्ही तीनों तकनीक के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।

जानिए डीआरएस के बारे में
डीआरएस यानी डिसीजन रिव्यू सिस्टम। इससे खिलाड़ी ऑन फील्ड अंपायर के फैसले को चुनौती देते हैं। DRS लेने का अधिकार फील्डिंग टीम में सिर्फ कप्तान के पास होता है, जबकि बल्लेबाजी टीम में जो खिलाड़ी क्रीज पर है वह अंपायर के निर्णय को चुनौती दे सकता है। यदि उसकी मांग सही होती है तो थर्ड अंपायर ऑन फील्ड अंपायर के निर्णय को बदल देते हैं। ऐसे में DRS भी खत्म नहीं होता, लेकिन अगर खिलाड़ियों की मांग गलत साबित होती है, तब डीआरएस खर्च हो जाता है और तीन गलत मांग करने के बाद टीम के पास कोई डीआरएस नहीं बचता है।

हॉक-आई तकनीक (hawkeye technology)

  • इस तकनीक का इस्तेमाल एलबीडब्ल्यू (LBW) के डिसीजन पर किया जाता है। इस तकनीक के जरिए यह अनुमान लगाया जाता है कि गेंद पिच पर गिरने के बाद कहां जाती। क्या इस गेंद का संपर्क स्टंप से होता, या फिर नहीं।
  • इस तकनीक में पहले दिखाया जाता है कि गेंद कहां टप्पा खाई और इसके बाद कितना कांटा बदला। अगर यह गेंद बल्लेबाज के पैर से नहीं टकराती तो उसी एंगल के साथ गेंद कहां जाती।
  • लेकिन यह तकनीक हमेशा से सवालों के घेरे में रही है। कई एक्सपर्ट का मानना है कि प्रत्येक पिच पर अलग-अलग उछाल होती है। ऐसे में उसका जो सटीक अनुमान मैदान में खड़ा अंपायर लगा सकता है, वह कंप्यूटर के बस की बात नहीं है।

हॉट-स्पॉट तकनीक (hotspot technology)
इस तकनीक को हम कुछ एक्स-रे जैसा बोल सकते हैं। गेंद जहां पर टकराती है वहां पर सफेद रंग का निशान नजर आता है। गेंद अगर बल्ले का किनारा लेकर गई है तो इसको देखने के लिए अंपायर इस तकनीक का प्रयोग करता है। गेंद अगर बल्ले पर टकराती है या फिर जहां भी टकराती है वहां पर सफेद रंग का गोला नजर आ जाता है। हालांकि यह काफी महंगी है और अधिकतर मैदानों पर यह सुविधा नहीं है। भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच सीरीज में भी इसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है।

अल्ट्राएज तकनीक (UltraEdge technology)
सबसे पहले अल्ट्राएज और वीडियो फुटेज के जरिए यह देखा जाता है कि गेंद बल्ले पर लगी है या नहीं। अल्ट्राएज तकनीकि स्टंप माइक के जरिए आवाज सुनती है और एकदम हल्की आवाज भी पकड़ लेती है। ऐसे में बल्ले का महीन किनारा लगने पर भी इस तकनीक के जरिए आउट या नॉटआउट का फैसला हो जाता है। कैच आउट के लिए या यह पता करने के लिए कि गेंद बल्ले से लगी है या नहीं, इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

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